अंबिकापुर. कम्प्यूटरेसी, नेटीजन, डिजीटल दुनिया के बढ़ते प्रभाव ने उपयोक्ताओं को अवसाद में धकेलना प्रारंभ कर दिया है। 'नीली रोशनी' की चकाचौंध का सबसे ज्यादा दूष्प्रभाव बच्चों पर है। ये बातें मनोचिकित्सा काउंसलर डा. माधुरी मिंज ने बताईं।
उन्होंने बताया कि मोबाइल, लैपटॉप, कम्प्यूटर के बढ़ते प्रचलन ने प्रौढ़ों के साथ बच्चों को भी आगोश में ले लिया है। परिवार में छोटे बच्चे को लोग खिलौने के रूप में मोबाइल पकड़ा दे रहे हैं, जिसकी लत उम्र के साथ ही बढ़ती जा रही है। किशोरावस्था में पहुंचने के साथ ही लड़के मोबाइल, लैपटॉप पर समय बिताने लग रहे हंै।
मोबाइल, लैपटॉप के साथ अधिक समय बिताने के कारण अकेलापन, अवसाद की स्थिति निर्मित हो रही है। डा. माधुरी ने बताया कि अंबिकापुर में बच्चों के ऐसे मामले अधिक आ रहे हैं।
यदि लत लग चुकी है तो बच्चों के साथ अभिभावकों की भी काउंसिलिंग कराएं। बच्चों को डिजीटल दुनिया में अधिक देर तक नहीं रहने देने की सलाह उनके द्वारा दी गई है।
यह आ रहा बदलाव
डा. माधुरी मिंज ने बताया कि मोबाइल, इंटरनेट के ज्यादा उपयोग से उपयोक्ता अकेलापन महसूस करने लग जाता है। लोगों के साथ उसका मिलना-जूलना कम हो जाता है। बच्चे इन्टरनेट की दुनिया को ही वास्तविक दुनिया मानने लगते हैं।
एकटक देखने से बढ़ी पलक झपकने की अवधि
श्री साईं बाबा आदर्श महाविद्यालय के कम्प्यूटर विभाग के डॉ. रितेश वर्मा ने बताया कि मोबाइल से इलेक्ट्रो मैग्नेट किरण निकलती हैं। इलेक्ट्रो मैग्नेट किरण आंखों के लिए खतरनाक है। सभी मोबाइल, लैपटॉप से निकलने वाली नीली रोशनी आंखों की रेटिना पर असर करती हैं। देर तक लैपटॉप, मोबाइल पर काम करने से आंखें खुली रह जाती हैं।
आंखों के पलक झपकने की अवधि दिनोंदिन बढ़ती जाती है। देर तक आखों के खुलने से आंख के पानी (आंसू)सूख जा रहे हैं। आंसुओं को सूखना परेशानी का कारण है। ऐसे में आंखें लाल हो जाएंगी और सिरदर्द बढ़ेगा।
डॉ. रितेश ने बताया कि लगातार कम्प्यूटर, मोबाइल पर काम करने से बैठने का पोस्चर खराब होने से गर्दन की हड्डियों में दर्द होने लगेगा। उन्होंने बताया कि कम्प्यूटर, लैपटॉप आंख के समानान्तर होना चाहिए। मोबाइल देखते समय गर्दन झुक जाती है। गर्दन का झुकाव हड्डियों में दूरी पैदा कर देता है, जो खतरनाक है।
ये सावधानी बरतें
कम्प्यूटर, लैपटॉप पर काम करते समय कुछ अंतराल के बाद छोटा विश्राम दें। काम के दौरान चेहरे और आंखों को धोएं। काम के दौरान बैठने का पोस्चर ठीक रखें। बच्चों को मोबाइल न दें।
इन्टरनेट की लत बच्चे में आ रही हैं तो मनोचिकित्सक से काउंसिलिंग कराएं। बच्चे, परिजन के साथ मेलजोल अधिक रखें। डिजीटल दुनिया की अपेक्षा वास्तविक दुनिया ज्यादा करीब है। वास्तविक दुनिया में मनोरंजन प्रदान करें।
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